कान्हा राष्ट्रीय उद्यान

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान व बाघ अभयारण्य

भारत का राष्ट्रीय पशु - बाघ, पृथ्वी पर पाई जानें वाली बड़ी बिल्ली प्रजातियों में से सबसे खूबसूरत है. जहां एक बार भारत के जंगलों में 40,000 से अधिक बाघ घूमा करते थे आज ये लगभग विलुप्त होने के कगार पर है. जंगलों के अत्यधिक दोहन व शिकार के कारण आज भारत के वन क्षेत्रों में बाघों की संख्या घट कर 2000 के करीब आ गई हैं. हम बाघों को चिड़ियाघर में भी देख सकते हैं परंतु जंगल में मुक्त विचरण करते बाघ देखने का रोमांच और उत्साह का वर्णन करना मुश्किल है. आज हम बाघों को देखने कई प्रसिद्ध बाघ अभयारण्यों जैसे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, आदि में बाघ सफारी हेतु जा सकते हैं.

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान - परिचय

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान व बाघ अभयारण्य मध्य प्रदेश राज्य के मंडला एवम्‌ बालाघाट जिलों में स्थित है. कान्हा में हमें बाघों व अन्य वन्य जीवों के अलावा पृथ्वी पर सबसे दुर्लभ हिरण प्रजातियों में से एक - बारहसिंगा (दलदली हिरण) को भी देखने का मौका मिलता हैं. समर्पित स्टाफ व उत्कृष्ट बुनियादी पर्यटन ढांचे के साथ कान्हा भारत का सबसे अच्छा और अच्छी तरह से प्रबंधित अभयारण्य हैं. यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य, हरे भरे साल और बांस के सघन जंगल, घास के मैदान तथा शुद्ध व शांत वातावरण किसी भी व्यक्ति को सम्मोहित कर लेता हैं. कान्हा पर्यटकों, प्राकृतिक इतिहास / वन्य जीव फोटोग्राफरों, बाघ और वन्यजीव प्रेमियों के साथ साधारण जनता के बीच बड़े पैमाने पर प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि लेखक श्री रुडयार्ड किपलिंग को ‘जंगल बुक’ नामक विश्व प्रसिद्ध उपन्यास लिखने के लिए इसी जंगल से प्रेरणा मिलीं थी.

कान्हा नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व बाघ और बारहसिंगा देखने के लिए सर्वश्रेष्ठ गंतव्य है। इसके अलावा यहाँ आप तेंदुआ, गौर (भारतीय बाइसन), चीतल हिरण, सांभर, बार्किंग डीयर, सियार इत्यादि 22 स्तन धारी जानवरों, पक्षियों की 250 से अधिक प्रजातियों, 29 सरीसृप और हजारों कीट देख सकते हैं. प्रकृति की सैर व वन्य जीवों को देखने के अलावा बैगा और गोंड आदिवासीयो की संस्कृति व रहन सहन को देखने के लिए भी आप यहाँ आ सकते हैं.

इतिहास

कान्हा नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व 1973 में इसके वर्तमान स्वरूप और आकार में अस्तित्व में आया था, लेकिन इसका इतिहास महाकाव्य रामायण के समय से पहले का हैं. कहा जाता हैं कि अयोध्या के महाराज दशरथ ने कान्हा में स्थित श्रवण ताल में ही श्रवण कुमार को हिरण समझ के मार दिया था तथा श्रवण कुमार का अंतिम संस्कार श्रवण चित्ता में हुआ था. मूलतः बैगा और गोंड आदिवासी इस वन क्षेत्र में स्थानांतरण कृषि और वन उपज एकत्र कर अपनी जीविका का पालन करते थे.

भारत में सबसे पुराने अभयारण्य में से एक, कान्हा राष्ट्रीय उद्यान को 1879 में आरक्षित वन तथा 1933 में अभयारण्य घोषित किया गया था और यह 1973 में बाघ अभयारण्यों की लीग में शामिल हो गया. बोला जाता हैं की इस क्षेत्र में पायी जाने वाली काला उपजाऊ मिट्टी जिसे स्थानीय भाषा में ‘कनहार’ के नाम से जाना जाता है के कारण इस वन क्षेत्र का नाम कान्हा पड़ा. एक अन्य प्रचलित लोक गाथा के अनुसार कवि कालिदास जी द्वारा रचित ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ में वर्णित ऋषि कण्व यहां के निवासी थे तथा उनके नाम पर इस क्षेत्र का नाम कान्हा पड़ा.

कान्हा टाइगर अभयारण्य - समय रेखा

• जेम्स फोर्सिथ ने अपनी किताब ‘सेंट्रल इंडियन हाइलैंड्स’ में 1860 में कान्हा का जिक्र किया हैं.

• 1879 में कान्हा आरक्षित वन के रूप में अधिसूचित हुआ.

• कान्हा और सुपखार में 1910 में वन विश्राम गृह बनाया गया.

• 1930 के दशक में बंजर और हेलोन अभयारण्य बनाया गया.

• कान्हा 1955 में एक राष्ट्रीय उद्यान बन गया.

• 1963-65 में विख्यात वन्य जीव विशेष्ग्य जॉर्ज स्कालर ने कान्हा के वन्य जीवों पर कार्य किया.

• वन ग्रामों के स्थानांतरण – 1968 – 1990 के दशक में.

• बाघ परियोजना 1973 के तहत एक टाइगर रिजर्व मनोनीत.

कान्हा क्षेत्र बैगा और गोंड आदिवासियों का निवास रहा है. बैगा आदिवासियों को भारतीय उप महाद्वीप के सबसे पुराने निवासियों में से एक के रूप में जाना जाता है। वे स्थानांतरण खेती किया करते थे और जंगल से शहद, फूल, फल, गोंद, आदि लघु वनोपज एकत्र कर के अपना जीवन यापन करते थे. स्थानीय क्षेत्र और वन्य जीवन का उनको बहुत गहरा ज्ञान है. ऐसे ही एक बैगा मंगलु के सम्मान में कान्हा के अंदर एक सड़क उनके नाम पर समर्पित की गयी है.

गोंड आदिवासियों भी किसान रहे हैं और देश के कई प्रदेशों में वे फेले हुए है. कहा जाता है लगभग 800 वर्षों के लिए वे इस क्षेत्र पर शासन करते रहे. रानी दुर्गावती गोंड शासकों के बीच एक प्रसिद्ध नाम है. गोंड आदिवासी भी लघु वनोपजों के संग्रह में लिप्त है और बांस और लकड़ी के हस्तशिल्प के बहुत कुशल कारीगर हैं.

कान्हा के जंगलों का स्थानीय लोक गाथा में कई जगह, मुख्यतः शिकार एवम्‌ शिकारियों की कहानियो में उल्लेख आता है. लपसी कब्र नामक स्थान में लपसी नामक शिकारी का स्मारक हैं जिसके लिए कहा जाता है कि वह बहुत महान शिकारी था.

भूगोल

940 वर्ग किलोमीटर में फैला कान्हा राष्ट्रीय उद्यान केंद्रीय भारतीय हाइलैंड्स का हिस्सा है, मैकाल पहाड़ी रेंज इसकी पूर्वी सीमा बनाती हैं. जमीन की ऊँचाई समुद्र स्तर से 2000 से 3000 फुट तक की है. ऊँचाई वाले समतल पठारों, जो घास के मैदान के रूप में है को स्थानीय भाषा में दादर के नाम से जाना जाता है. बम्हनी दादर नामक पठार कान्हा का सबसे ऊँचा स्थान है. नर्मदा नदी की दो सहायक नदियां बंजर व हलोन इसके बीच से बहती है. गर्मी के मौसम में यहाँ का तापमान 42 डिग्री सेंटीग्रेड तक और ठंड में न्यूनतम तापमान -5 डिग्री सेंटीग्रेड तक चले जाता हैं.

वन्य जीव

कान्हा अभयारण्य के मुख्य आकर्षण बाघ, गौर, सांभर, चीतल, बारहसिंगा, बार्किंग डीयर, ब्लैक बक, भालू, सियार, लोमड़ी, साही, जंगली बिल्ली, अजगर, खरगोश, बंदर, नेवला और तेंदुए हैं। इन के साथ आप 217 प्रकार की तितलियों, कीड़े, सरीसृप, 1200 प्रकार के पौधे और पेड़ देख सकते हैं.

पक्षी प्रेमियों के लिए यह एक बहुत अच्छा के गंतव्य है. कान्हा में 259 से अधिक प्रजाति के पक्षियों को देखा जा सकता है. पार्क में पक्षियों की प्रजातियों जैसे कुक्कू, रोलर्स, कोयल, कबूतर, तोता, ग्रीन कबूतर, रॉक कबूतरों, स्टॉर्क, बगुलों, मोर, जंगली मुर्गी, किंगफिशर, कठफोड़वा, फिन्चेस, उल्लू और फ्लाई कैचर को आप आराम से देख सकते है. शीतकालीन मौसम में आप कई प्रवासी पक्षियों को देखने का लुत्फ उठा सकते है.

कान्हा में पर्यटन

कान्हा नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व जंगलों के राजा – बाघ के लिए प्रसिद्ध है। पर्यटन के लिए अभयारण्य 15 अक्तूबर से खुल जाता है तथा 30 जून के करीब मानसून के आगमन के साथ बंद हो जाता हैं. लोग बाघ और जंगल के अन्य जीव जंतुओं को देखने व प्रकृति का आनन्द लेने के लिए यहाँ आते हैं और इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है जिप्सी सफारी. एक जिप्सी में 6 लोगों को भ्रमण की अनुमति दी जाती जिससे वे प्रकृति का आनंद ले सके और उनके प्राकृतिक घर में जंगली जानवरों को देख सकते हैं.

सफारी भ्रमण 2 भागों में सुबह और दोपहर को दैनिक आयोजित की जाती हैं, बुधवार को शाम के समय अभयारण्य पर्यटन के लिए बंद रहता है. सफारी का आनंद उठाने के लिए प्रवेश परमिट बुक किया जाना आवश्यक है। प्रवेश परमिट अपने टूर ऑपरेटर या आवास प्रदाता के माध्यम से और सीधे MPONLINE कि वेबसाइट से बुक किया जा सकता है। जंगल भ्रमण के लिए पंजीकृत जिप्सी वाहन ले जाना आवश्यक है जिसे आपका आवास प्रदाता या आप खुद प्रवेश द्वार पर बुक कर सकते हैं. जंगल और जानवरों को समझने में मदद हेतु प्रवेश द्वार पर वन विभाग द्वारा एक गाइड दिया जाता है. यहां सफारी चार जोन में होती है कान्हा, किसली, सरही तथा मुक्की. वर्तमान में (2017 - 18 सीजन) प्रवेश की अनुमति, वाहन, गाइड शुल्क, सेवा शुल्क और करों के साथ कान्हा, किसली, सरही और मुक्की जोनों में एक भ्रमण कि लागत 5400 /- प्रति सफारी पड़ता है. कान्हा के बफर जोन में भी सफारी भ्रमण के लिये आप जा सकते हैं. अगर आप कान्हा जोन में भ्रमण के लिए जाते है तो संग्रहालय देखना न भूले, वहाँ आपको कान्हा के जंगलों तथा जीवों के बारे में बहुत अच्छी व शिक्षाप्रद जानकारी मिलती है.

कान्हा राष्ट्रीय पार्क के चारों ओर बफर क्षेत्र में आदिवासी संस्कृति और जीवन स्तर को देखने के लिए गांव का भ्रमण तथा जंगल को पास से देखने व समझने के लिए एवम्‌ पक्षी निहारण के लिए पैदल जंगल भ्रमण किया जा सकता हैं. यदि संभव हो तो बुधवार को स्थानीय बाजार का भ्रमण किया जा सकता हैं. कान्हा के प्राकृतिक परिवेश और शांत वातावरण में साधारण स्वस्थ भोजन, योग और ध्यान के साथ स्वास्थ्य पर्यटन का आनंद भी लिया जा सकता है. वन्य जीवों की फोटो चित्रकारी जंगली जानवरों के व्यवहार और जीवन की बेहतर समझ में मदद करती है तथा जंगलों एवम्‌ वन्य जीवों के प्रति सद्भाव का वातावरण बनाने में बहुत अहम भूमिका निभाती है, इसके लिए पूरी दुनिया के वन्य जीव फोटो चित्रकार यहाँ आते है.

मैं व्यक्तिगत अनुभव से ये कह सकता हूँ कि कान्हा नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व में बिताया समय आपको हमेशा याद रहेगा और आप यहाँ वापस बार - बार आना चाहेंगे.